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Amrit vani “अमृत वाणी “


” जिस प्रकार पशु को घास तथा मनुष्य को आहार के रूप में अन्न की आवश्यकता होती है,

उसी प्रकार भगवान को भावना की जरूरत होती है।

प्रार्थना में उपयोग किए जा रहे शब्द महत्वपूर्ण नहीं बल्कि भक्त के भाव महत्वपूर्ण होते हैं।”


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